Site icon पद्यपंकज

वसंत की पुकार – अमरनाथ त्रिवेदी

Amarnath Trivedi

वसंत की खुशबू फिजा में,
तैर रही नित शान से।
जवाँ दिल बढ़ें चलें,
रुकें न अग्नि बाण से।

न आदि है न अंत है,
वसंत ही वसंत है।
पसरी हुई प्रकृति में,
यह अनंत ही अनंत है।

विशालता के बोध में,
यह अग्रणी वसंत है।
हिया अपना खोल दें,
यह भा रहा जीवंत है।

यह वसुंधरा की बहार है,
प्रकृति का   श्रृंगार है।
वसंत के   उद्यान में,
फैला  हुआ  दुलार  है।

यह वसंत  की  पुकार है,
यह सुहानी धरा का प्यार है।
जीवन की डोर उस ओर हो,
जहाँ  बहार ही  बहार  है।

जहाँ नव मंजरों पर  भँवरे,
गुँजार  मंद-मंद  कर  रहे।
यही  फ़िजा वसंत की,
गुलज़ार  चमन  भर रहे।

कूकती कोयल डाली पर,
यह वसंत की पहचान है।
यह मादकता फैला रही,
यही वसंत की उड़ान है।

जवाँ  दिल  की  शान है,
यह प्रेम  का पैगाम  है।
सुगंध  की  बयार   ही,
वसंत   का इनाम   है।

धरा पर हो सुहानी छटा,
यह वसंत का अरमान है।
नव पल्लवों पर मादकता छा रही,
यह  वसंत  का फरमान है।

है हर्ष हिया में लिए,
कदम बढ़ायें ताल से।
रुकें न मार्ग में कभी,
डरें न कभी  काल से।

उठें अभी,  रुकें  नहीं,
यही वसंत का कद्रदान है।
जीवंत हों, जयी  बनें,
यही प्रकृति का वरदान है।

अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड-बंदरा, जिला-मुजफ्फरपुर

2 Likes
Spread the love
Exit mobile version