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विकास की मार – जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra Prasad Ravi

चहुओर चकाचौंध दिवाली की रात है।
सफाई के साथ लाई खुशी की सौगात है।।
बल्बों की लड़ियों से घरों को सजाते हैं।
दरवाजे और दीवारों पर रंगोली बनाते हैं।।
रोशनी से जगमग दिशाएं चारों ओर है।
जमीं आसमान में पटाख़े की शोर है।।
लोगों के चेहरे पर चमक है विकास की।
दिवाली की रात कुछ लोग हैं मायूस भी।।
हुनरमंद कारीगर लाचार हुए कुंभकार।
बिजली के आने से छिन गए रोजगार।।
पसीने से मिट्टी को सोना वो बनाते थे।
बर्तनों को बेचकर वो रोजगार पाते थे।।
पतंगे भी खुश होते थे रोशनी को चूमकर।
शम्मा को गले लगाते थे आपस में झूम कर।।
फूलों के गमले लोगों को आती नहीं रास है।
कपटी-चुक्के, हांडी-घड़ा, सुराही भी उदास है।।
किसी को विकास की कीमत तो चुकानी है।
आधुनिक फैशन में हुई दुनिया दीवानी है।।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

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