छंद:-मनहरण घनाक्षरी
“शीत”
सघन है काली रात,रौशनी है थोड़ी-थोड़ी,
बंद हुआ घर-द्वार,जाड़े का आलम है।
सूर्य ढ़का तुहिन से,घूप थोड़ा निकाला है,
आलस्य डेरा डाला है,सर्दी का पैगाम है।
चहल-पहल थम गई अब राहों पर,
तन ढ़का,मन थका,ठंड बेलगाम है।
बिछा गर्म शैय्या जब,तन उष्मा पाया तब,
शीतल भरी रात है, शीत का कलाम है।
एस.के.पूनम(स.शि.)पटना।
प्रा.वि.बेलदारी टोला, फुलवारी शरीफ।
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