पिता उम्मीद एक आस है।
संतानों की दिव्य पहचान।
परिवार अटूट विश्वास है।
स्वाभिमान तो कभी अभिमान।
कभी पिता निज अंस बिठाते
सतत भरोसा एक आधार।
अँगुलि पकड़कर सैर कराते
निज संतति भरते संस्कार।।
बिना पिता यह जगत अधूरा
पद यश वंदन इनका गाएँ।
कर्म-धर्म निश्छल हो पूरा
सौम्य सुखद अनुपम सुख पाएँ।।
हर घर- घर की शान पिता है।
सुखद अनुभूति मान पिता है।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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