भूखी प्यासी चल रही,
साँवली सलोनी नारी,
ठौर न ठिकाना कहीं,आशियाना आसमान।
जननी पुकारे कोई,
नभ तले मिली सोई,
अपना न सुत-पुत,कैसे करे अभिमान।
तपी है कंचन काया,
करुणा से मिली छाया,
कर्म पथ पर लीन,संसार करे सम्मान।
समर के प्रहरण,
नये-नये प्रकरण,
स्वीकार करती रही,देतीं जग को प्रमाण।
2
हृदय में धधकती,
यातना की चिनगारी,
कर जाता परेशान,नाहक का फरमान।
बदली-बदली फिजा,
नारियों की सजगता,
गरिमा को त्याग कर,कैसे सहे अपमान।
हिया में उदार भाव,
फूलों जैसी अभिलाषा,
ज्ञान शिखा बाँध कर,बन बैठी यजमान।
उड़ान है विचारों का,
गगन वितान पर,
प्रखर प्रहार कर,कथन है सर्वमान।
एस.के.पूनम(स.शि.)फुलवारी शरीफ,पटना।
0 Likes