समय सुहाने बचपन के
खेल- खेल में पढ़ते जाएँ।
जीवन को अनमोल बनाएँ।।
हम नए-नए खेलों को खेलें।
नई-नई खुशियाँ भी ले लें ।।
हम बच्चे देश के कर्णधार कहलाते।
हम हीं देश की शोभा बढ़ाते ।।
बचपन का समय बहुत सुहाना।
न कोई चिंता, न कोई फिक्र, बहाना।।
खेल- खेल में शरीर है बनता।
पढ़ाई-लिखाई से ज्ञान है बढ़ता।।
खेल-खेल में होती है मस्ती।
सबसे है यह होती सस्ती ।।
हम बालपन की अच्छी आदतें।
जीवन में कुछ कम हो शरारतें।।
भूल से कभी न यह काम करें हम।
बदनामी से बहुत डरें हम ।।
बदनामी कलंक का पर्याय है।
इससे बचने के बहुत उपाय हैं।।
गंदी आदतें हमें बदनाम कराती।
सकल लोक में नीचा हमें बताती।।
ऐसा वादा न करें कोई हम।
जिसे पूरा न कर सके कभी हम।।
झूठ की खेती कभी न करें।
ऐसे पाप से सदा बच के रहें।।
जो बोलें उसे करके दिखाएँ।
झूठी अफवाह कभी न फैलाएँ।।
इस धरती पर मूल्य उसी का होता।
जो अपना बहुमूल्य समय कभी न खोता।।
हम-सब भी जब समय की पहचान करेंगे।
तभी जीवन में ऊँची उड़ान भरेंगे।।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड बंदरा, जिला मुजफ्फरपुर

