शीतल पवन चली,
दूब बिछी मखमली,
सुंदर नजारा देख,कदम ठहरता।
फैली हुई हरियाली,
झुकी हुई धान बाली,
फसलों को देखकर चेहरा निखरता।
पक्षियों का कलरव
सुन दिल खिल जाता,
सुबह में घूमे बिना मन नहीं भरता।
सुबह की ताजी हवा,
सौ रोगों की होती दवा,
प्रकृति की आंगन में जीवन सँवरता।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
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