कलम के सौदागर,
प्रमाण लेकर आज,
जगत के सम्मुख खड़े,होकर दिखाइए।
पन्ना-पन्ना भर गया,
गहन चिंतन शोध,
तिमिर को भेद कर,सोए को जगाइए।
क्रांति की लालसा लिए,
डूबे रहे विचारों में,
बदले हैं तख्त ताज,अक्षुण्य तो रखिए।
लेखनी ही खड्ग है,
शब्दकोश मंजूषा है,
लेखकों की कल्पनाओं,का सेतु बनाइए।
एस.के.पूनम
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