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हां मैं शिक्षक हूं।

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जीवन के अंधियारे को,
नित्य निज प्रकाश से भारती हूं।
तुम कहते हो मैं ठहरी हूँ, पर
मैं निर्झर बनकर बहती ‌‌हूँ ।
हां मैं शिक्षक हूं।
यदि मैं कर्म पथ पर रुक जाऊं ,
अपने कर्त्तव्य से हो विमुख।
तो सूख जाएंगे नन्हें पौधें,
तरुण ना वे बन पाएंगे फिर।
हां मैं शिक्षक हूं।
नन्हें – नन्हें हाथों में मैं,
भर पाऊं यदि भविष्य भारत का,
तो फिर बोलो मुझ सा कौन प्रखर।
हां मैं शिक्षक हूं।
जीवन के……………..।
नित्य निज प्रकाश……..।

रश्मि मिश्रा

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Rashmi Mishra

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