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हाथ तिरंगा – रामपाल प्रसाद ‘अनजान’

भूली याद करा जाने को, मौसम आया है।
हाथ तिरंगा आज विभूषित,सबको भाया है।।

मन में हरियाली छाई है,
मस्त सभी जन हैं।
प्रेम-डोर में गुंफित माला,
पहने सब तन हैं।।
उन्मादित कर रहा गगन तक,शुभ-स्वर छाया है।
हाथ तिरंगा आज विभूषित,सबको भाया है।।

आगे खड़ा हिमालय चोटी,
पर चढ़ जाऍंगें।
राह समंदर नहीं दिया पथ,
अलग बनायेंगे।।
बड़े कठिन से पूर्वज ने यह,मंजिल पाया है।
हाथ तिरंगा आज विभूषित,सबको भाया है।।

उम्रभेद सब अर्थहीन है,
संभाव सुखद है।
टूटे प्याले भेदभाव में,
माधुरी शहद है।।
हे ईश्वर!ऐसा ही रखना,बदली काया है।
हाथ तिरंगा आज विभूषित,सबको भाया है।।

गंगा-जमुना देख तिरंगे,
प्रीत बढ़ाते हैं।
सागर शीश उठाकर स्वागत,
गीत सुनाते हैं।।
लक्ष्य पूर्वजों ने यह कैसे, दम से पाया है।
हाथ तिरंगा आज विभूषित,सबको भाया है।।

पड़ी कालिमा की छाया को,
दूर भगा देंगे।
एक रहे हैं एक रहेंगे,
शपथ नेक लेंगे।।
राष्ट्र पर्व देवों को दुर्लभ, सच कहलाया है।
हाथ तिरंगा आज विभूषित,सबको भाया है।।

रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दर्वे भदौर
पंडारक पटना बिहार

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