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हाथ बढ़ा प्रभु मंगल दीजै – कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’

Kumkum

है अति बेकल नैन हमारे।
दर्शन को प्रभु राम तुम्हारे।।
देकर दर्शन काज सँवारें।
नाथ हमें भव से अब तारें।।

थाल सजाकर मैं प्रभु आई।
पूजन पूर्ण करो रघुराई।।
हाथ बढ़ा प्रभु मंगल दीजै।
हे हरि पूर्ण मनोरथ कीजै।।

हूँ कब से प्रभु हाथ पसारे।
आप बिना प्रभु कौन हमारे।।
हे प्रभु देर नहीं अब कीजै।
दर्शन राम मुझे अब दीजै।।

हे रघुनंदन कष्ट निवारें।
दर्शन देकर प्राण सँवारें।।
है अति सुंदर रूप तुम्हारा।
मोह लिया जिसने जग सारा।।

राम लला प्रभु दर्शन दीजै।
हे रघुनाथ कृपा अब कीजै।।
देख मनोहर रूप तुम्हारे।
हर्षित हैं प्रभु नैन हमारे।।

देव हमें अब पार उतारें।
नाथ कृपा कर कष्ट निवारें।।
आप बिना प्रभु कौन हमारे।
हाथ पसार खड़े हम द्वारे।।

कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”
‘शिक्षिका’
मध्य विद्यालय बाँक, जमालपुर, बिहार

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