साहित्य का सागर,
धर्म ग्रंथो से उर्वर,
बनाती शून्य को भी महान है।
हिन्दी केवल भाषा नहीं,
हमारे अस्मिता की पहचान है।
इसमें भावनाओं की,
सरल- सहज अभिव्यक्ति।
यह आध्यात्म का मार्ग,
साहित्यकारों की निश्छल भक्ति।
यह सिखलाये,
गुरुओं का वन्दन।
अनुजों को प्यार,
अग्रजों का चरणवन्दन।
भारत माता के शीश पर शोभित,
भारतीय संस्कृति की बिन्दी है।
करती भावनाओं को यथार्थ परिभाषित,
जन -जन की भाषा हिन्दी है।
हिन्दी के ही आँचल तले,
नौनीहालो की ऊँची उड़ान है।
स्वर-व्यंजन की ऊँगली थामे,
चढ़ते ज्ञान के वो पायदान है।
अर्श हो या फर्श,
सिखाती सबका वो
सम्मान है।
हिन्दी केवल भाषा नहीं,
हमारी अस्मिता की पहचान है।
अंजली कुमारी
प्राo वि o तितरा आशानंद
मुरौल, मुजफ्फरपुर
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