हमारी अस्मिता की पहचान पुंज है,
माँ भारती की निनाद गूंज है,
भाषाओँ , बोलियों का मिलन कुंज है,
प्यारी भाषा हिंदी, जन-जन की भाषा हिंदी।
क्षमा , दया , धर्म , सत्य ,
उपमा, रूपक अनुगूंज है,
श्रृंगार , करुण, वात्सल्य, वीर रस,
सरस, मधुरता का महाकुंभ है।
आज़ादी की भाषा थी यह ,
माँ के सर की बिंदी है
अब सात समंदर पार भी ,
UNO मे हिंदी है।
गुज़ारिश है इतनी,
माँ–बाप को न ‘मॉम–डैड’ बनाओ ,
हिंग्रेजी के चक्कर में न ,
संस्कृति का सत्यानाश कराओ।
पावन, निर्झर ,समुज्ज्वल प्रशस्त इसको पंथ दो ,
शक्ति समर्थ , रश्मि है माटी का कंठ दो ।
पुकारती माँ भारती, तू प्रकाश पुंज है
हिंदी के स्वाभिमान का तू अनुगूंज है ।
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