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15 अगस्त है हमसे नाराज

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15 अगस्त है हमसे नाराज

 

 

तू जिसे मान बैठा है अपना राज, आज वो 15 अगस्त है हमसे नाराज | पूछता है वो की, क्या? वाकई में इतने वर्षो में किया हमने कोई ईज़ाद ||

 

देखो आज देश के कैसे हैं हालात की, भ्रस्टाचारीयो के बिगड़े हैं मिजाज | जनता लगाती है, अब न्याय की गुहार लेकिन खादी वाले लोग भी नकार देते हैं इनकी पुकार ||

 

कहाँ गयी वो देशभक्ति, जिसके ताकत से उजड़ गयी थी अंग्रेजों की बस्ती | रखतें थें क्षमता विद्रोहियों की मिटाने की हस्ती, लेकिन अब देशप्रेम हो गयी हैं सस्ती ||

 

सिमट गया हैं वो देशप्रेम अब कुछ ही वीरों से, बिकती हैं दुनिया गाँधी जी के तस्वीरों से |

मिट गयी है वो आजादी, जो गढ़ी गयी थी खून के लकीरों से, देश अब भरा पड़ा हैं बड़े घूसखोर जैसों फकीरों से ||

 

ना रहा वो प्रेम, न रहीं वो भक्ति और ना ही बन पाया बलिदानियों जैसा दूसरा ये गणराज्य | शायद, इसीलिए आज वो 15 अगस्त है हमसे नाराज ||

 

 

 

रचयिता – श्री रवि कुमार जी

पद – शिक्षक

विद्यालय – कन्या उत्क्रमित मध्य विद्यालय, मसाढ़, उदवंतनगर, भोजपुर ( बिहार )

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रवि कुमार

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