Site icon पद्यपंकज

घनाक्षरी”मेरी कामना” – एस.के.पूनम

S K punam

जाग कर प्रातःकाल,निकलूँ अकेले राह,
मेरे दोनों चक्षुओं में,भरे कई रंग हैं।

मृदुल झंकार सुन,नव अनुराग चुन,
मन पुलकित होता, जीने का ये ढ़ंग है।

उस पथ को मैं चला,जहाँ था जीवन पला,
सीखा मैं जीवन ढ़ंग, रंगा अंग-अंग है।

जल बिन सूखी धरा,बन कर नीर ज़रा,
थोड़ी-सी बरस जाऊं, मन में उमंग है।

एस.के.पूनम(स.शि.)
फुलवारी शरीफ, पटना।

Spread the love
Exit mobile version