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रूप घनाक्षरी छंद- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra

गुरू को समर्पित


बागानों में फल-फूल, खेतों बीच कंद-मूल,
सुमन को बसंत में,
‘रवि’ महकाता कौन!

सूरज कहां से आता ,रोज रात कहाँ जाता,
ऊँचा नीला आसमान,
तारे चमकाता कौन?

रोज मंद-मंद बहे,
शीतल पवन रस,
पक्षियों को दाना नित्य,बताओ खिलाता कौन?

निज अंक भरकर, अंगुली पकड़कर,
हमें नित्य सत्य पथ,
चलना सिखाता कौन?

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना

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