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पर्यायवाची कविता-आँचल शरण

पर्यायवाची कविता

आओ बच्चों तुम्हें बताएं बातें कुछ तेरे ज्ञान की,
झट याद हो जायेगा तुम्हें कुछ नये-नये शब्द, बस जरूरत है थोड़े ध्यान की।

राजा को हम कहते है नृप, नरेश, भूप, भूपाल, सम्राट भी।

वहीं कहते कृष्ण को माधव, केशव, श्याम, मुरारी और गोवर्धन गिरधारी, जिसे प्रेम करते पूरे भारतवासी।

फिर कहते कमल को जलज, पंकज, राजीव और सरोज है, जिसका कीचड़ भी कुछ न बिगाड़ पाया हो।

कहते आँख को लोचन, नयन, नेत्र और नैन है, बिन इसके जग पूरे सून है।

ईश्वर के है अनेक नाम ईश, इष्ट, ब्रह्म, देव, देवता और अंतर्यामी, जिसे हम सब कहते पालनहारे।

घर को कहते सदन, निलय, गृह भवन और आलय, जो देता सभी को आश्रय है।

सूरज कहलाता रवि, आदित्य, दिनकर, दिवाकर, भाष्कर और अवि, जो समय पर जगना हमें सिखलाता है।

कहलाता चाँद चंद्र, चंद्रमा, राकेश, क़मर, शशि, रजनीश और शशांक, जो करता प्रदान शीतलता सारी रात है।

आगे जानों आकाश को कहलाता फलक, अंबर, गगन, व्योम और आसमान है। जिसके गोद मैं असंख्य तारे, सूरज, चाँद विद्दमान है।

कहते माँ को जा, माता, जननी, धात्री और प्यारी अम्मीजान है, जिसके आँचल में पले धरती के हर सन्तान है।

पिता की भी बच्चों जानो कहलाते
जनक, पितृ, पितु, दायिता और पालनहारे बापू है।

आओ बच्चों तुम्हें बताएं बातें तेरे ज्ञान की, 
झट याद हो जायेगा तुम्हें कुछ नये-नये शब्द, बस जरूरत है तेरे ध्यान की …

आँचल शरण
बायसी पूर्णियां बिहार

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