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आगमन-मधु कुमारी

Madhu

आगमन

देखो नई किरण बन नई सुबह का
कितना सुहावना आगमन हो रहा है
काली अंधेरी निशा का, प्रातःकाल
किरणों के आने से गमन हो रहा है……

उषा का नव किरणों के साथ
रवि का अद्भुत नमन हो रहा है
पल-पल छट रहा है अंधेरा हो जैसे
आशातीत प्रभु का उदय हो रहा है……

सपने अब धीरे-धीरे सो रहे हैं
जागी अँखियों से भी अब शयन हो रहा है
देखो खिड़की के झरोखे से
सूर्य की पहली किरण का
मीठा-मीठा आगमन हो रहा है……

ओस की बूंदों के साथ
कलियों का मधुर दमन हो रहा है
विहग कर रही है मीठी कलरव
कितना सुहावना सृजन हो रहा है…..

मधुर सुगन्धित फूलों के ख़ुशबू से
विचलित देखो हौले-हौले पवन हो रहा है
कर रही प्रकृति को सजाने का पवित्र प्रयास
कितना प्यारा प्रातः बेला का जतन हो रहा है…..

देखो नई किरण बन नई सुबह का
कितना सुखद आगमन हो रहा है
आशा के आगमन से निराशा का
दूर बहुत दूर गमन हो रहा है…….।

मधु कुमारी
कटिहार 

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