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आज की कविता-गिरिधर कुमार

Giridhar

आज की कविता

संकोच कुछ नहीं है
अब कहने में
की हारने लगी है कविता
कि मेरी कविता
अब म्लान रूग्ण और
बेजान हो गयी है।

झूठ के उत्साह से
दूर हटने लगी है कविता
झूठ के रंग से मुकरने लगी है कविता
क्या कर लोगे कवि
तुम इस बेनूरी में!
तुम्हारी बातों का
मजाक बनाते हैं सब।

ये हठ?
कैसे क्या चलेगा कविता
कुछ तो करना पड़ेगा
अंधेरा कितना भी घना हो
लड़ना पड़ेगा!

नहीं कवि
यह कविता नहीं है!!!
यह मात्र आत्म अवलोकन है तुम्हारा
इससे कुछ नहीं बनता बिगड़ता
तुम्हारे सुर से अब कुछ नहीं सँवरता!

इस बार अड़ियल है कविता
मुझे हार मनाकर छोड़ेगी शायद
लेकिन मेरी
प्यारी प्रेयसी कविता
यह तो तुम्हारी भी हार है
कवि की हार के साथ?

कविता!
अब भी क्लांत है
जिद से भरी है अभी भी
कैसे यह कहूँ कि
ये मान जाएगी
कहना भी नहीं चाहता मैं अब
कुछ यत्न और प्रयत्न से?
यह असम्मान होगा
मेरी कविता के लिए
मेरे लिए …

चलो ठीक है
मेरी बदली हुई कविता
आओ तुम्हारा अभिनन्दन है
तुम जैसी भी हो
बीमार या भली??
मेरी कविता!
मेरी आज की कविता!!

गिरिधर कुमार

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