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आज की नारी मोहताज नहीं किसी की-विवेक कुमार

Vivek

आज की नारी मोहताज नहीं किसी की

प्रकृति की हसीन वादियों की नूर है नारी,
सृष्टि की अमिट निशानी पालनहार है नारी,

युगों युगों से सामाजिक कुरीतियों से घिरती चली आ रही नारी,
आंसू की घूंट पी, पलट उफ तक न करती, बेबस थी नारी,

समता के लिए उठी आवाजों को समाज के नुमाइंदों ने था, गुमराह किया,
फिर भी हिम्मत न हारी थी अपना सर्वस्व वाड़ा मगर हौंसले को न डिगने दिया,

घर को संभालने के साथ ही अधिकारों की रखी भान,
अपनी शक्ति को पहचान निकल पड़ी वो सीना तान,

कोमल है कमजोर नहीं शक्ति का नाम नारी है, यह अहसास दिलाता उसे पहचान,
जज्बे से मिला ज्ञान, उठ खड़ी हुई पाने अपना छीना सम्मान,

यातना की इन्तहा हुई खत्म अब कुछ कर गुजरने की बारी आई है,
कमर कस हर मैदान में विजयी पताखा फहराने की कसम खाई है,

जिनसे रचा बसा संसार लोहा मान उसके सर पर सजा ताज है,
मीराबाई चानू पर जिस तरह आज जग को नाज है,

अमृता प्रीतम जी के हर एक हर्फ में क्रांति की महक नारी का सम्मान है,
आज की नारी मोहताज नहीं किसी की यह उसका अभिमान है।

✍️विवेक कुमार
उत्क्रमित मध्य विद्यालय गवसरा मुशहर
(स्वरचित एवं मौलिक)

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