आँखें
आँखों से बहते आँसू,
कहता है एक अफसाना,
गमों का दौर हो या,
खुशियों के चंद लम्हें,
आँखों से शबनम की बूंदें जैसी,
गिरती है रुखसारों पर।
ये आँखें!
जज्बातों का आयना है,
हकीकत का समंदर है,
सपनों का सौदागर है,
प्रणय के भाव-भंगिमा का दर्पण है।
प्रकृति का मनोरम दृश्य हो,
या हृदय विदारक मंजर हो,
अम्बर से टूटते तारे हो या,
प्रियजनों से बिछडने का क्षण,
हर दृश्य समेट जीती है ये आँखें।
कुछ गुजरे जमाने की यादें,
कुछ पाने की हसरतों की तस्वीरें,
दर्पण है!
दिखा जाती है धुंधली सी परछाईं,
जद्दोजहद भरी जीवन की सच्चाई को,
ईश्वर की अनुपम रचना है ये आँखें।
एस. के. पूनम
फुलवारी शरीफ़, पटना
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