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अब भी यूं रुका क्यों है -डॉ स्नेहलता द्विवेदी

तू अब भी यूँ रुका क्यूँ है?

गुलाब कांटों से यूँ लगा क्यूँ है ?
जिंदगी तेरा ये फ़लसफ़ा क्यूँ है?
जो मुस्कराते हो शबनम की तरह,
पलकों का रंग जुदा क्यूँ है?

ये जमीं जब जमीं ना रहे,
समझ ले ये आसमां क्यूँ है?
हर तरफ़ तेरी उड़ानें हैं,
तू जमीं पर यूँ खड़ा क्यूँ है?

नाप लो इस आसमां को तू,
परिन्दों का तू हमनवां क्यूँ है?
कतरे गए गर पर भी तेरे,
हौसलों की तो ख़ता क्यूँ हैं?

चलो जिंदगी हम तेरे हैं,
तू भी यूँ बेवफा क्यूँ है?
आख़िर नज़र तुझे आ ही गया,
मेरा ये नया आसमां क्यूँ है?

ये जो छाले हैं तेरे पावों के,
हौसले से खौफ़जदा क्यूँ है?
मंजिलें तुम्हें बुलाती है,
तू अब भी यूँ रुका क्यूँ है?

डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्या

उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार

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