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अब क्या-प्रभात रमण

अब क्या

अब क्या गाँव की शान ढूंढते हो ?
अपनी सभ्यता का सम्मान ढूंढते हो
बाँस के मचान का दलान ढूंढते हो
बबूल के पेड़ में आम ढूंढते हो
बाढ़ में सब तो डूब गया है
पानी भरे खेत में धान ढूंढते हो
सारे रिश्ते खतम हो गए हैं
अब कहाँ मैत्री का पान ढूंढते हो ?
सब हो गए हैं एकल यहाँ
और तुम सकल खानदान ढूंढते हो
फ़टी गुदड़ी के पेट में
भूंजा हुआ मखान ढूंढते हो
अन्न के बिना उपवास हो रहा अब
तुम गरीबी में सरकारी अंशदान ढूंढते हो
सबके लिए हम मर चुके हैं
तुम नए सरकार को मतदान ढूंढते हो
सब तो हैं आत्मनिर्भर बने हुए
तुम मतदाता सूची में नाम ढूंढते हो
अब क्या गाँव की शान ढूंढते हो ?
अब क्या गाँव की शान ढूंढते हो ?

प्रभात रमण
मध्य विद्यालय किरकिचिया
प्रखण्ड – फारबिसगंज
जिला – अररिया

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