स्तनपान धर्म है
नौ माह अपनी कोख में सहेजी,
अपने पोषण से ही पोषित की,
हर पल अपने ख्यालों में रखीं,
मेरी सुरक्षा में सदैव तत्पर रहीं।
मुझे तुम धरती पर प्रथम आहार दीं,
अमृत-सा अपना स्तनपान कराकर,
तुम से ही है तन और मन का रिश्ता,
तुम्ही हो जननी और भविष्य निर्माता।
स्तनपान कराकर अपना धर्म निभाती हैं,
स्वास्थ्य जीवन का आधार प्रदान करती हैं,
इसी से मेरा संरक्षण और संवर्धन होता है, प्रतिरोधात्मक क्षमता विकसित होता है।
तुम्हारी स्तनपान की प्रत्येक बूंदें,
मेरे लिए है अमृत तुल्य जीवन में,
गहरी हो जाती है आत्मीय संबंध,
बंध जाता है प्रकृति के शाश्वत रिश्ते से।
देखो न जैसे चाँद बिखेरती चाँदनी,
सूरज देते रौशनी और तपिश,
नदी सींचित करती है वसुंधरा,
तरु भी जग को सुगंधित करते,
वैसा ही अपना स्तनपान कराके,
मां होने का शाश्वत धर्म निभाती हैं।
एस. के. पूनम
फुलवारी शरीफ पटना