अविरत बढ़े सदा ही जीवन में
अविरत बढ़े सदा ही जीवन में,
क्या पाया आज विचार करें।
अंतस के दिव्य प्रकाशपुंज से,
आलोकित जग-संसार करें।
जो शुष्कता फैली उर अंतस में,
प्रेम बूँदों की घनी बौछार करें।
खिल उठेंगी सुसुप्त हर कलियाँ,
हृदय बगिया को गुल-गुलजार करें।
क्षणभंगुर से इस नश्वर जीवन में,
पथकंटक से ही अब शृंगार करें।
बहती जाए सदा प्रेम की धारा,
धरा-गगन अनंत विस्तार करें।
भटकें कभी न पथ से अपने,
हर चुनौती हँसकर स्वीकार करें।
विचलित हों न पग छालों से,
अर्जुन सा लक्ष्य पर प्रहार करें।
मिल जाएगी निश्चित ही मंजिल,
पहले हर बाधा को तो पार करें।
विजयगान गाएगा ये जग सारा ,
नव प्रतिमान जो शिरोधार करें।
नित नवल किरणें बिखरे आशा की,
चतुर्दिक मिल इसका संचार करें।
कर विश्वबंधुता और शांति का ध्यान,
सदा सद्कर्म और सदाचार करें ।
अर्चना गुप्ता
म. वि. कुआड़ी
अररिया बिहार