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आविष्कार-बीनू मिश्रा

आविष्कार

क्षुधा पेट की शांत हुई तो
जिज्ञासु मन हार न फिर मानी थी,
हरदम कुछ ना कुछ खोज निकाला
खास जरूरत पूरी करके,
उसने सुस्ती नहीं दिखाई
काट-पीट और तराशकर,
पत्थर लकड़ी और धातु को
कर कुछ दिखाना था मानव को,
क्षुधा पेट की शांत हुई तो
हार न फिर मानी थी।
गढने लगा नित नए सोपान प्रगति के
खोज की अग्नि की,
फिर चक्र बनाया
धातु को फिर खोज निकाला,
दौड़ पड़ा फिर तो मानव
चढ पहिए पर प्रगति के पथ,
वर्तमान, भूत और भविष्य के
सभी क्षेत्रों में प्रगति को आधार बनाया,
क्षुधा पेट की शांत हुई तो
बन जिज्ञासु मन कोशिश करके,
कुछ करना था मानव को।
तकनीक कृषि की
या हो स्वास्थ्य विज्ञान,
ज्ञान खगोल की या
मौसम की गुत्थी,
जो भी हम आज देख रहे
वह सदियों के संघर्षों की कहानी,
हुआ विकसित विज्ञान देश का
इसी विकसित विज्ञान के सहारे,
विकसित होना था मानव को
क्षुधा पेट की शांत हुई तो,
बन जिज्ञासु मन
हार न फिर मानी थी।

बीनू मिश्रा
नवगछिया, भागलपुर
बिहार

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