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बचपन हमें जीने दो-स्वाति सौरभ

बचपन हमें जीने दो

किताबों की बोझ तले, न बचपन हमारा दबने दो
कागज की कश्ती से ही, विचारों की धारा में बहने दो

भीगने दो बारिश की बूंदों में, बुलबुले बनाकर उड़ाने दो
सजाने दो अपनी सोच से दुनिया को, दीवारों को भी रंगने दो

सावन के झूले पर बैठ, हवाओं से बातें करने दो
लड़ने दो दोस्तों के साथ, उँगलियों को जोड़ फिर दोस्ती करने दो

लेकर चुन्नी अपने सर पर, सजने दो सँवरने दो
बनाने दो मिट्टी से खेल खिलौने, तोड़ने दो फिर जोड़ने दो

गोद से उतर कर जहाँ में, बढ़ाने शुरू किए हैं अपने कदम
न बांधो बेड़ियाँ अभी से, लड़खड़ाने दो, खुद ही संभलने दो

कवच तोड़कर अभी जहाँ में, पंख निकलने शुरू हुए हैं
न कतर दो अभी से इनको, परिंदों को उड़ने दो, गगन चूमने दो

बोलना सीखा है अभी तो हमने, थोड़ी बात अपनी भी कहने दो
मत रोक टोक करो हर बात पर, थोड़ा सीखने दो समझने दो

मत छीनो हमसे हमारा बचपन, हमें गलतियाँ करके भी सीखने दो
मत खोने दो हमारी मासूमियत, बचपन को हमें अभी जीने दो

स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक
आदर्श मध्य विद्यालय मीरगंज
आरा नगर, भोजपुर

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