बचपन की यादें
प्रदान करें फ़कत प्रेम सा शीतल,
खूबसूरत बचपन की यादें हर पल,
दहलीज़ असीमित हुआ करती थी,
मन यूँ बावरा हो जैसे नाचे महीतल।
भविष्य की तनिक परवाह न थी,
उन्मुक्त जीते बस आज में हम,
सुध – बुध अपनी कुछ ऐसी थी,
ज्यों लहराए इक कटी पतंग।
सखियों संग खुले दिलों से हम ,
निरंतर हुड़दंग मचाया करते थे,
गर गाड़ी जो हमें नहीं मयस्सर,
टायर को हम दौड़ाया करते थे।
माँ का आँचल था सुरक्षा कवच,
जो पापा से अक्सर बचाती थी ,
पर जो लाड़ करन को दिल चाहे,
तो पापा को मैं दोस्त बनाती थी।
चाहें जुदा हुए बचपन से हम,
इतिहास पुनः दोहरायेंगे,
अंदर के बचपन को रख जिंदा,
जीवन मंजुल बनायेंगें।
नूतन कुमारी
पूर्णियाँ, बिहार
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