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बचपन-प्रीति कुमारी

Priti

बचपन

बचपन के वो अनमोल पल
जैसे हो स्वच्छ और निर्मल जल।
नहीं फिक्र किसी भी बात की
न चिन्ता थी जज्बात की।

बस खेल-कूद और थी मस्ती
पढ़ना लिखना और मटरगस्ती।
लोभ मोह और लालच से
था हमें नहीं कोई वास्ता।
जीवन के कठिन थपेडों से

हीं दूर-दूर था कोई नाता।

जैसे जैसे हम बड़े हुए
जिम्मेवारियाॅं भी बढ़ने लगी।
है आसान नहीं इतना जीवन
यह बात समझ में आने लगी।
बचपन का वह अल्हड़पन
समय के साथ खोता गया।
जीवन के नित नए उलझनों में
दिल दिमाग भी उलझ गया।
अब समय नहीं है हमारे पास
जीवन में भागम-भागी है।
पैसों के पीछे जग भागे
हम उसी रेश में शामिल हैं।
पर कभी-कभी जब शाम ढले
फुरसत के कुछ पल मिलते हैं।
मन पंछी बन उड़ जाता है
और ले जाता है हमें
उन्हीं पुरानी यादों में
जब अमराइयों में हम दोस्तों संग
कच्चे आम तोड़कर खाते थे।
जब बागों में दूर-दूर तक
तितलियों के पीछे भागा करते थे।
जब तालाब में घण्टों
मछलियाँ मारा करते थे।
जब गाँव की पगडंडियों पर,
सरपट दौड़ा करते थे परन्तु

आज जब तन्हाईयों में
मन के अंदर झाँकने का
मौका मिला
तब ये समझ में आया कि
बचपन के वो अनमोल पल
जीवन का सबसे स्वर्णिम पल था।

काश कि वे दिन लौट पाते।

 प्रीति कुमारी
कन्या मध्य विद्यालय मऊ विद्यापति नगर समस्तीपुर

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