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बागों में बहार है-प्रकाश प्रभात

बागों में बहार है

हर मौसम खुशी लेकर आए,
दुःख की क्या बिसात है। 
हम सभी मिल-जुलकर रहेंगे,
डरने की क्या बात है। 

सप्ताह में सात दिन होते,
साल में भी 365 दिन है।
जनवरी से दिसम्बर तक,
बारह महीनों का साथ है।

कोंपल लिए बसंत आई है,
चारों ओर छाई हरियाली है।
मंजर अब पेड़ों पर लगे हैं,
झुक रही पेड़ों की डाली है।

कली खिली, फूल खिले,
भौंरे भी गुन-गुनाए हैं।
देख बसंत का दिल भी डोला,
पतझड़ भी शरमाए हैं। 

बसंत ऋतु की बयार है,
फागुन मास में फुहार है।
पुष्प खिले हर मौसम में,
बागों में भी बहार है। 

सावन के झूले हैं,
जेष्ठ की तपती गर्मी है।
पानी से प्यास बुझे,
जिंदगी भी सहमी है।

जाड़ा, बसन्त, हेमंत हो,
गर्मी फिर बरसात है।
हसते-हसते सब झेल जाएँगे,
या फिर तूफानी रात है।

कोयल कुहके बुलबुल गाए,
सावन में नाचे मोर पपीहा है।
चुनरी ओढ़े इंद्रधनुष आए,
जैसे लगे छतरी मसीहा है।

प्रकाश प्रभात
प्राo विo बाँसबाड़ी बायसी

पूर्णियाँ बिहार

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