बाल दिवस
कर लें थोड़ा हम सद्विचार
बच्चों को देख मेरे मन का,
संताप सहज खो जाता है।
बच्चों के साथ में जीने का,
सहचर्य अविरल हो जाताहै।
बच्चा बन पल रस पीने का,
आनंद तो अद्भुत होता है।
खुद अंतर्मन में बच्चे का,
स्वभाव अहर्निश होता है।
हम लाख करें अब चतुराई,
बच्चों का जन मन होता है।
हमने कर ली कुछ अधिकाई,
मन में बच्चा अब रोता है।
बच्चों की दुनियाँ है अद्भुत,
निर्मल निश्चल और निर्विकार।
घ्यानी ज्ञानी बनकर सचमुच,
करते हर पल हम भाव वार।
इस बाल दिवस को प्रण लें हम,
न करें अब बचपन का संहार।
चाचा नेहरू को नमन करें हम,
कर लें थोड़ा हम सद्विचार।
स्नेहलता द्विवेदी “आर्या”
मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार
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