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वीर बांकुड़ा कुंवर सिंह-अपराजिता कुमारी

वीर बांकुड़ा कुंवर सिंह

आज बिहार के वीर
बांकुड़ा का विजयोत्सव
सब मिलकर मनाते हैं,
वीर बांकुड़ा केसरी
कुंवर सिंह की
गर्जना को फिर से
याद करते हैं।

बांध मुरैठा 52 गज का,
बदन रोबीला, चौड़ी
उनकी पेशानी थी,
दया, धर्म, सुयश, की गाथा
सबको याद जरूर दिलानी थी।

खौल उठी 80 वर्ष में
जब सन् 57 में बूढ़े खून में
पुनः उनकी जवानी थी,
देश प्रेम की लहरें जब
हर ओर से उठ रही थी।

बंगाल के बैरकपुर में जब
विद्रोह की आग सुलग चुकी थी,
दिल्ली, मेरठ, लखनऊ,
ग्वालियर तक लपटें
पहुंच चुकी थी।

अंग्रेजों ने आरा पर
जब चढ़ाई कर
युद्ध की ठानी थी,
सबने कुंवर सिंह को
भीष्म पितामह माना था,
सब कहते जगदीशपुर
प्रिय उनकी राजधानी थी।

जगदीशपुर जागीरदारी पर
जब अंग्रेजों ने
कुदृष्टि डाली थी
आरा पर अधिकार
जमाने की सोची थी।

केशरी कुंवर सिंह की
दहाड़ से रणोन्मत्त हो
देश के सैनिकों
के रण के आगे,
अंग्रेजी फौज कहां
टिकने वाली थी।
चहूंँ ओर गूंज उठी
कुंवर सिंह की
जय जयकार थी।

‘छापा मार शैली’ के आगे
अंग्रेजी सेना कहां
टिकने वाली थी,
थरथर करती, हारी
अंग्रेजी सेना
जान बचाकर भागी थी।

रण के क्रम में गंगा पार
करने को कुंवर सिंह ने
शिवपुरी घाट से ठानी थी,
बीच गंगा में
डग्लस की सेना ने
गोली बाँह में मारी थी।

जहर गोली का फैलते
देख झट तलवार से बांह
अपनी काट डाली थी,
भारत मां के सपूत ने
गंगा में अपनी बांह
प्रवाहित कर डाली थी।

25 हजार सैनिकों को ले
23 अप्रैल अंग्रेजों को
हरा कर, उन पर
विजय पाई थी।

जीत की अंतिम लड़ाई थी
3 दिनों बाद 26 अप्रैल
वह अशुभ दुर्दिन
कुंवर सिंह ने संसार से
वीरगति पाई थी।

कहानी उस वीर
बलिदानी की
बलिदान उस
बलिदानी की
बूढ़े खून में जो
उबली नई जवानी थी।

बिहार के वीर बांकुड़ा का
विजयोत्सव चलो सब
मिलकर मनाते हैं,
वीर बांकुड़ा केसरी
कुंवर सिंह की गर्जना को
फिर से याद करते हैं।

अपराजिता कुमारी
राजकीय उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय
जिगना जगन्नाथ
हथुआ गोपालगंज

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