बिल्ली रानी बिल्ली रानी
बिल्ली रानी, बिल्ली रानी
चुपके चुपके आती हो
जरा सी आंखें जो बन्द
कर लूं तो, सारे दूध
पल में चट कर जाती हो।
कितनी नटखट हो कितनी शैतान
सारे दिन करती हो सबको परेशान
भगा भगाकर खूब हो चूहे खाती
न जाने क्यों चुहों को इतना सताती।
बिल्ली-चूहे हैं आपस में दौड़ लगाते
अपनी करतब से हैं हमें हरपल लुभाते
बच्चों को तुम्हारी कारस्तानी है खूब भाती
बिल्ली रानी है तेरी अज़ब कहानी।
लुका छिपी के इस खेल में
भागते भागते चूहों के पीछे
बिल्ली रानी, बिल्ली रानी
क्या याद आ गई तुम्हें स्व नानी।
बिल्ली मौसी अब हो गई बूढ़ी
है भाग नही अब वो पाती
पल में है थक वो जाती
याद आती है अब उसे
अपनी और चूहे की कहानी
बिल्ली रानी, बिल्ली रानी।
मधु कुमारी
कटिहार
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