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चलो पढ़ें हम-भोला प्रसाद शर्मा

Bhola

चलो पढ़ें हम

नाम कोरोना का सुन अब तुम न घबराना रे—-
चलो पढ़ें हम–चलो पढ़ें हम
दूरी बना कर मास्क लगाकर पढ़ने जाना रे—-
चलो पढ़ें हम–चलो पढ़ें हम
नन्हा-मुन्ना राह में आकर नाम कमाना रे—-
चलो पढ़ें हम—चलो पढ़ें हम
देख खौफ़ का ये जमाना न विचलित हो जाना रे
चलो पढ़ें हम—चलो पढ़ें हम

दो साल पर खुला है स्कूल
भूल गये हम साथी को
दूर हो गये हम गुरु से
गये भूल भी पाती को
साथ पाकर गुरू जी का अब खुश हो जाना रे—
चलो पढ़ें हम—चलो पढ़ें हम

एक दिन पढ़े थे प्यासा कौआ
भूल गये सब आधा पौवा
समझाये गुरू जी घड़ा बनाकर
आया याद अब स्कूल आकर
सब मिल अब पहचान बनाना रे—
चलो पढ़ें हम–चलो पढ़ें हम

गुरू जी बोले चलो सलौना
खिला विद्यालय कोना-कोना
खड़िया श्यामपट आस लगाये
देख फूल भी अब हर्षाये
टिन्कू-मिनियाँ चल अब बागान सजाना रे—-
चलो पढ़ें हम—चलो पढ़ें हम

एक दिन फिसल गये थे डंडे
दिये गुरू जी दो-दो अंडे
बोले बेटा उठ खड़े हो
क्यों बालक तुम वीर पड़े हो
लगा दौड़ तू जा बजा अब टुनटुनियाँ रे—-
चलो पढ़ें हम–चलो पढ़ें हम

देख दीवारें याद जो आया
बहुत दिनों पर शुभ दिन भाया
उधम मचाकर गीत भी गाना
खेल-खेल में गाये तराना
कर तैयारी खूब जोड़ से अव्वल आना रे—-
चलो पढ़ें हम—चलो पढ़ें हम।
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भोला प्रसाद शर्मा
डगरूआ, पूर्णिया (बिहार)

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