चम्पारण की दास्तान
सन 1917 की चम्पारण की दास्तान सुनो
सुनो सुनो ऐ दुनिया वालों
गांधी का अभियान सुनो।
गांधी बनें थे सत्याग्रही
चम्पारण की धरती पर
यही उन्होंने बिगुल फूंका था
यही बजी थी रणभेरी।
अंग्रेजों का फरमान यही था
यहां के पोषणहारों पर
बीघा के तीन कट्ठा में
नील की खेती करना है।
धान की खेती बंद हो गई
दाने दाने को मोहताज
अपने खेत भी हुए बेगाने
यही थी उनकी दास्तां।
राजकुमार शुक्ल ने भेजा
था संदेशा गांधी को
प्रियवर आकर खुद ही देखो
अपने नौनिहालों को।
संदेशा पाकर गांधी
कूंच कर गए तुरंत बिहार
सत्य और अहिंसा ही
यही थे उनके दो हथियार।
मोतिहारी जब पहुंचे गांधी
उमड़ पड़ा था जन सैलाब
होश उड़ गए थे फिरंगियों के
सुनकर गांधी की जयकार।
कलक्टर ने आदेश सुनाया
वापस जाओ गांधी तुम
अगर नहीं वापस जाओगे
गिरफ्तार हो जाओगे।
गांधी थे एक निडर सिपाही
अपना निर्णय सुना दिया
किसानों से मिले बिना
वापस मुझे नहीं जाना।
देना पड़ा आदेश तुरंत ही
एक कमिटी बनाने का
तीन कठिया समाप्त हो गया
गांधी के अभियान से।
बगान मालिक चले गए
अपनी लाज बचाने को
गांधी जी विजयी हो गये
सत्याग्रह के अभियान में।
कुमारी निरुपमा
मध्य विद्यालय भरौल बछवाड़ा बेगूसराय