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चित्र चिंतन-आँचल शरण

चित्र चिंतन

ए स्वप्न परी क्या सोच रही है
यूँ काली अंधेरी रातों में? 
क्या लुप्त हो गया जो ढुूंढ रही हो
इस तारों से घिरी नीली अम्बर की अंधियारों में!

क्या आश लगाए बैठी हो,
क्यों सखियों की राह निहारे बैठी हो
ये चाँद सा मुखड़ा उपवन में
ऐसे मुरझाये बैठी हो!

सिर पर सजता ताज तेरा
जड़ती मोती-माणिक की लड़ियों से
एक मुस्कान बिखड़ा दे अधरों पर
खिल जायेगी सारी कलियाँ,

इस काली अंधियारों में!

तेरे हाथ तो है ऐसी जादू की छड़ी,
जिसे घुमाते ही हो आ जायेगी तेरी सुखद घड़ी!
फिर से आ जायेगी तेरे चेहरे पर मुस्कान इस अधियारों में।

ए स्वप्न परी क्या सोच रही है 
यूँ काली अंधेरी रातों में? 

आँचल शरण
बायसी पूर्णिया

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