गीत (गीतिका छंद)
कष्ट हरना है जगत का, आज यह समझा गए।
देवता साक्षात नभ से, पूछने हैं आ गए।।
पर्व पावन है सदा ही, प्रेम महिमा कह रही।
भाव की सरिता जहाँ पर, भाव में ही बह रही।।
शुद्धता का मान इसमें, सीख यह उपजा गए।
देवता साक्षात नभ से, पूछने हैं आ गए।।०१।।
चार दिन व्रत में रहें तो, दोष तन का भी हटा।
सौम्यता के साथ रहकर, रोग मन का भी घटा।।
निर्जला रह साधना से, हर्ष कुछ हम पा गए।
देवता साक्षात नभ से, पूछने हैं आ गए।।०२।।
और मानवता सभी में, सूर्य किरणें भर रही।
एक जैसी सोच लाएँ, विषमता को हर रही।।
अर्घ्य की महिमा बताते, गीत सारे गा गए।
देवता साक्षात नभ से, पूछने हैं आ गए।।०३।।
गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
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