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दिनकर-एकलव्य

दिनकर

रातों को दिन में बदले,
दिनकर वही कहलाते थे
सत्ता का पैर जब फिसले
राष्ट्रकवि तब हाथ बढ़ाये थे,
सत्ता में रह सत्ता का मर्दन
दिनकर ही कर सकते थे
राष्ट्र की रक्षा के खातिर
राष्ट्रकवि लड़ पड़ते थे।

कौन्तेय की बातें सब करते
गाण्डीव उसी का कहते थे
सूत पुत्र, राधेय गाण्डीव
दिनकर से पा जाते थे,
वीरों की परिभाषा
रणक्षेत्र सदा बतलाता है,
कुलगोत्र नहीं वीरो की जाति
दिनकर से पा जाता है।

कर्ण भेद न जग पा जाए
न कोई अबला कहलाए
वीरों और पुरुषार्थी का
सम्मान सदा दिनकर बतलाए।

भुजबल से नारायण का
रथ पीछे कर जाता था
पाण्डव को जीवन दान में देकर,
दानवीर की मार्यादा को
भलिभाँति समझाया था
वह और नहीं, प्रचंड तेज
रश्मि रथी का नायक कहलाया था।

छायावाद के थे पुरोहित
वीर रस से भरे हुए
नारायण के चरणों में
जीवन को अर्पित कर आए,
स्वर्ग बैठ वे देखते होंगे
अभिलाषा कब पूरी होगी
जब कलम सुदर्शन चक्र बनेगा
सत्य नमन, दिनकर का तब पूरा होगा।।

कमल एकलव्य
संकुल समन्यवक
मध्य विद्यालय पोखरभीड़ा
पुपरी, सीतामढ़ी

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