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गाँव की मिट्टी-अनुज वर्मा

गाँव की मिट्टी

आज भी जीवंत है गाँव, 
उसकी मिट्टी और छाँव। 
कच्ची थी पगडंडी,
नहीं थी कोई मंडी। 

पेड़ों पर झुलना,
गिरकर फिर संभलना। 
नानी दादी की कहानी,
खूब सुनी जुबानी। 

होली के पहले खेली गई,
वो मिट्टी से लिपटी धूरखेली। 
एकता और प्रेम से बनी,
घास-फूस की हवेली। 

बड़ा सा आँगन और दरवाजा,
आतिथ्य को तैयार था। 
शादियों में शहनाई बाजा,
गाँव का सुर-ताल था। 

कहाँ गई वो गाँव की मिट्टी,
कहाँ गई वो सोनी खुश्बू। 
आज भी वो दिन याद आता है,
गाँव की मिट्टी बहुत भाता है। 

अनुज वर्मा
मध्य विद्यालय बेलवा
कटिहार, बिहार 

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