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गर संभव हो-विजय सिंह नीलकण्ठ

Vijay

गर संभव हो

गर संभव हो तो दुःखियों की
थोड़ी भी मदद कर लें
क्या लेकर जाएंगे जग से
सबसे बड़ा पुण्य कर लें।
बिन लाचार हुए कोई भी
हाथ नहीं फैलाते हैं
पर के लिए सदा इस भू पर
दु:ख सहकर भी जीते हैं।
पर का भी कर्तव्य यही है
हाथ बढ़ाकर दुःख हर लें
ईश्वर देख प्रसन्न हो जाए
खुशियों से झोली भर दें
इनकी दुआ से आप पर भी
कुबेर सदा प्रसन्न रहे
विपदा न आए जीवन में
घर में सदा खुशी रहे।
फिर से एक यही विनती है
गर संभव हो मदद कर दें
गजब प्रसन्नता होगी दिल में
मदद तो करके देखें।
विजय सिंह नीलकण्ठ
सदस्य टीओबी टीम
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