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गुरु की महिमा-भवानंद सिंह

गुरु की महिमा 

गुरु की महिमा अपरंपार
पा न सका कोई इससे पार,
गुरु का सदा करो सम्मान
गुरु से होता है सबका कल्याण ।

मनुष्य को मानव बनाया
मानवता का पाठ पढ़ाया,
जो पाया गुरु की कृपा है
सबकुछ मिला गुरु की साया में ।

मृत लता को जीवन देता
अज्ञानी को राह बताता,
जीवन पथ से भटके लोगों को
मंजिल तक पहुँचाते हैं ।

वट वृक्ष सा गुरु का चरित्र
जो छाया ही छाया देते हैं,
उस छाया में बैठकर शिष्य
परिस्थितियों से लड़ना सीखता है ।

गुरु की महिमा का करो बखान
यह पूजा है, यही है ध्यान,
जिसने गुरु की बात को माना
हुआ जगत में उसका कल्याण ।

करो समर्पित गुरु की चरणों में
पाओ गुरु से ऐसा ज्ञान ,
जिससे जगत का हो कल्याण
तेरा भी होगा गुणगान ।

 शिक्षक हूँ मैं

शिक्षक हूँ मैं
शिक्षा का दीप जलाता हूँ ,
मोम की तरह जल-जलकर,
प्रकाश जगत में फैलाता हूँ ।

शिक्षक हूँ मैं
किए बिना अपनी चिंता,
चिंता जगत का करता हूँ,
सही राह सबको दिखाता हूँ ।

शिक्षक हूँ मैं
फैला यहाँ चहुँ ओर तिमिर है,
तिमिर को पथ से हटाता हूँ,
जगत से अंधकार मिटाता हूँ ।

शिक्षक हूँ मैं
मिला अगर कोई भी चुनौती,
हमने किया स्वीकार उसे,
गुरूओं से प्राप्त ज्ञान-विज्ञान से,
हर बाधा को दूर भगाता हूँ ।

शिक्षक हूँ मैं
मिली चुनौती था चाणक्य को,
नंद वंश का नाश किए,
बना सलाहकार चन्द्रगुप्त का,
मौर्य वंश का कल्याण किए ।

शिक्षक हूँ मैं
शिक्षा का दीप जलाता हूँ,
मोम की तरह जल-जलकर,
प्रकाश जगत में फैलाता हूँ ।

शिक्षक हूँ मैं
धर्म की राह पर चलता हूँ,
चले अगर कोई अधर्म पर,
उसे मैं धर्म बताता हूँ ।

शिक्षक हूँ मैं
कर्म पथ पर चलूँ हमेशा,
सबको यह पथ दिखलाता हूँ,
जगत से अज्ञान मिटाता हूँ ।

शिक्षक हूँ मैं
अगर कभी आये प्रलय तो,
आगे बढ़कर हाथ बँटाता हूँ,
प्रलय को यहाँ से मिटाता हूँ ।

शिक्षक हूँ मैं
कभी अधिकार की बात न करता,
कर्त्तव्य हमेशा निभाता हूँ,
शिक्षा का दीप जलाता हूँ ।

शिक्षक हूँ मैं
सरल, सुगम हो जो भी पथ,
पथिकों को वही पथ बतलाता हूँ,
मोम की तरह जल-जलकर,
प्रकाश जगत में फैलाता हूँ ।

शिक्षक हूँ मैं
शिक्षा का दीप जलाता हूँ,
मोम की तरह जल-जलकर,
प्रकाश जगत में फैलाता हूँ ।

भवानंद सिंह
उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय मधुलता, रानीगंज, अररिया

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