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हम अपना नववर्ष मनाते हैं-राजाराम सिंह ‘प्रियदर्शी’

हम अपना नववर्ष मनाते हैं

फागुन की अंतरिम बीते रात,
हो पावन पल से मुलाकात, नवरंग, तरंग, उमंग हो मन में।
हो रंग-बिरंग बिहंग उपवन में।
चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि को
नवगीत सुमित का गाते हैं।
हम अपना नववर्ष मनाते हैं।।

खेतों में गेहूँ, लपक-झपक कर, सरसों इतराये खेत में पककर,
चना, मसूर, अठखेलियाँ खेले, अरहर, लहराये खेत ऊंचे-खाले, देख ऐसी लुभावन मधुर छटायें,
खेतीहर गीत मिलन के गाते हैं।
हम अपना नववर्ष मनाते हैं।।

मजदूर-किसान खलिहानों में,
लग जाते हैं अपने उत्थानों में,
सब फसलों को काट-पीटकर,
मेहनत की बाजी को जीतकर,
बन जाता है माहौल उत्सव का,
हर्षित, मन ही मन मुस्काते हैं।
हम अपना नववर्ष मनाते हैं।।

होत अंत जब बसंत मास का,
आता पहर लहर मधुमास का,
आमों की हर डाल-डाल पर,
महकाये हर बागों को मंजर,
कोयल की सुनकर कूक मधुर,
वन-उपवन सब खिल जाते हैं।
हम अपना नववर्ष मनाते हैं।।

होने लगती हैं जब छोटी रातें,
करते सब बड़े दिवस की बातें,
लगती है प्रकृति संवर-सजने,
प्रेम रस की धार लगती बहने,
उगते नये पत्ते हर डाल-डाल,
तब पंछी जश्न में डूब जाते हैं।
हम अपना नववर्ष मनाते हैं।।

बजते ताशे, ढोल, झाल, मृदंग,
गांवों में दिखे हर तरफ उमंग,
शस्य-श्यामल रंग रात संवरती,
आनंदित हो जाती तब धरती,
प्रेम-भाव की बहती रसधार,
सब बैर-भाव मिट जाते हैं।
हम अपना नववर्ष मनाते हैं।।

राजाराम सिंह ‘प्रियदर्शी’
शिक्षक, कोईलवर भोजपुर

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