हमारी कविता
मुझे पता नहीं
कैसी है हमारी कविता
सुंदर, असुंदर या और कुछ
बच्चों की किलकारियाँ
शरारतें
स्लेट पर खींची आड़ी तिरछी रेखाएँ
उनमें झाँकती
भविष्य की आशाएँ
पतंग के डोर सा
पुरवैया के जोर से
प्रार्थना के टुकड़े कुछ
कभी न हारने का दम खम कुछ
हिलता डुलता संकल्प भी
असफल होने का डर भी…
पता नहीं इन बुनावटों में
कैसे बनेगी कविता
सुंदर अलंकारों से
कैसे सजेगी कविता
हमें परवाह नहीं अधिक
जैसी भी हो कविता
जैसी भी हो
हमारे सपनों में रहे कविता
उन छोटी आँखों में बसे कविता
हमारी राहों का
जो राही हो
हमारे सुख दुःख का
जो भागी हो
पता नहीं यह
जैसी भी है
मगर हमारी अनुभूति है
हमारी कविता
पता नहीं है
जैसी भी है
हमारे संकल्प की प्रस्तुति है
हमारी कविता!
गिरिधर कुमार, संकुल समन्वयक, संकुल संसाधन केंद्र, म. वि. बैरिया, अमदाबाद, कटिहार
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