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हिंदी सबकी शान-देव कांत मिश्र दिव्य

हिन्दी सबकी शान 

हिन्दी सबकी शान है, सभी करें सम्मान।
भाषा है प्यारी सुघड़, सरल सुगम गुण खान।।
कवि भूषण से नित यहाँ, चहके हिन्दी गान। पंत निराला से सदा, बढ़े हिंद का मान।।
पंकज सर का ताज है बिंदी नारी शान।
गीत सभी गाए वही जिसमें भारत गान।। हिन्दी है रोचक सरस, बात सभी यह जान।
और बढ़ाए प्यास यह, कवियों का अरमान।।
सुर तुलसी की वाटिका, मीरा की है पान। केशव-देवी से सरित, मंगल है जयगान।।
औरों की भाषा बने, हम सबका अरमान।
हिन्दी से उत्थान है, जन-जन में अभिमान।।
हिन्दी में अपनत्व है, निहित जगत कल्याण।
बिंदी है यह माथ की, रखो सदा तुम मान।।
हिन्दी कोयल की तरह, नव विचार का ज्ञान।
बनी धरोहर यह रही, और धरा का मान।। हिन्दी देश के हम सभी, हिन्दी है पहचान। भाषा है संवाद की, करते नित हम दान।।
हिन्दी के उत्थान से, हम सबका उत्थान। बनें राष्ट्रभाषा तभी, तभी हमारा मान।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ भागलपुर, बिहार

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