Site icon पद्यपंकज

वाह रे इंसान -जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra

वाह रे इंसान

पितरों को पानी देते हैं, जिंदा को सम्मान नहीं,
गली-गली इंसान भटकता, क्या उसमें भगवान नहीं?
मूर्ति की पूजा होती है, फूल चढ़ाए जाते हैं,
कुछ जाति को छोटा कहकर, छूत बताए जाते हैं।
घर में जो यदि सर्प निकलता, लोग दुश्मन बन जाते हैं ,
शिव मंदिर में उसी को ताजा दूध पिलाये जाते हैं।
ईश्वर के बंदे से भैया कभी बनाते दूरी हैं,
कभी बिठाते सिर आंँखों पर कैसी होती मजबूरी है?
हाड़-मांस-माटी के पुतले कैसी तेरी माया रे,
घड़ी-घड़ी क्या रंग बदलता, कोई समझ ना पाया रे।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version