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श्यामला सवारियां -जैनेंद्र प्रसाद रवि

Jainendra

श्यामला सांवरिया

एक दिन श्यामा प्यारी, साथ में सहेली सारी,
पानी भरने को गई, गोकुल नगरिया।

पहले तो घबराई, फिर थोड़ी सकुचाई,
पकड़ लिया जो हाथ , सांवला सांवरिया।

हार गई राधा गोरी, नज़र झुकी जो थोड़ी,
झटके से छुट गई, हाथ की गगरिया।

सारी सखियों को छोड़,भागी बरसाने ओर,
हवा लहराने लगी,लाली रे चुनरिया।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

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