नारी का अपमान
मनहरण घनाक्षरी छंद
लंकापति रावण का
यश बल धन गया,
किया अपमान जब, जनक दुलारी का।
कौरवों ने द्रौपदी की
चीर का हरण किया,
अबला लाचार जान, द्रुपद कुमारी का।
इंद्रदेव ने छल से
किया जब शील भंग,
घर में अकेली देख, गौतमी बेचारी का।
दुनिया में उसका तो
समूल विनाश हुआ,
किया अपमान कोई, जब किसी नारी का।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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