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जल-जीवन-स्नेहलता द्विवेदी “आर्या”

जल-जीवन

जल की कहानी तुम्हे क्या सुनानी,
नदी या नहर में समंदर नूरानी,
खाने का पानी या पीने का पानी,
नहाने सुहाने या जीने का पानी,
पानी ही पानी है पग पग में पानी,
हरेक कोशिका में है पानी ही पानी।

ये पानी न होता कहो तुम क्या होते,
न जीवन ही होता न जन्तु ही होते,
न पादप न पंछी न झरने ये होते,
न मछली न गंगा न घड़ियाल होते,
यहाँ कुछ न होता वहाँ कुछ न होता,
मैं भी तो न होता व तुम भी न होते।

आँखों में पानी या आँखों का पानी
है चेहरे में पानी या चेहरे का पानी,
जीवन का पानी या जीवन को पानी
पानी किया है या पानी पिलाया,
इसी सोच ने है ये पानी छुड़ाया।

दिया है जो रब ने, बचा लो तू अब से,
न बर्बाद कर इस नियामत को अब से,
सरे राह हमने किया जुल्म तब से,
आये हैं धरती पर हमलोग जब से।

अब से तो लौटें धरा को संभालें,
जीवन के इस अमृत को बचाले
जो न बच सका यहाँ शुद्ध पानी,
समझ लो खत्म हो गई जिंदगानी।

स्नेहलता द्विवेदी “आर्य”
मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार

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