जन्मभूमि
जन्मभूमि की पावन स्मृति
खत्म कभी मत होने दें।
नील गगन से देख विहग
नीड़ कभी न खोने दें।।
देश-भक्ति की सलिला में
नित मिलजुल हम स्नान करें।
मन को निर्मल करें सदा
नहीं अन्तर्मन सोने दें
जन्मभूमि की पावन स्मृति
खत्म कभी मत होने दें।।
मातृभूमि की खातिर हम
प्राणों का बलिदान करें।
आँख दिखाए भू पर जो
उसके नैन भिगोने दें
जन्म भूमि की पावन स्मृति
खत्म कभी मत होने दें।।
जिनके ह्रदय न प्रेम बसे
उन्हें सदा निर्जीव कहें।
दमन करे जो रिपुदल का
राह कंटक न बोने दें
जन्मभूमि की पावन स्मृति
खत्म कभी मत होने दें।।
परहित धर्म हमारा हो
सेवा का नित भाव जगे।
जिस माटी में हम पलते
उसे कभी मत रोने दें
जन्मभूमि की पावन स्मृति
खत्म कभी मत होने दें
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
भागलपुर, बिहार
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