Site icon पद्यपंकज

जय गंगा मैय्या-कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’

Kumkum

जय गंगा मैय्या

हर हर गंगे, नमामि गंगे।
पतितपावनी, मोक्षदायिनी गंगे।

भगीरथ के तपोबल से गंगा,
वैकुण्ठ छोड़ धरा पर आई।
महादेव के जटा में समाकर,
निर्मल धार धरा पर बहाई।

हर-हर गंगे, नमामि गंगे।
पतितपावनी, मोक्षदायिनी गंगे।

इसकी महिमा है अति भारी,
वेदों ने यह बात बताई।
अपनी निर्मल जलधारा से गंगा,
सगर पुत्रों को मुक्ति दिलाई।

हर-हर गंगे, नमामि गंगे।
पतितपावनी, मोक्षदायिनी गंगे।

नृप शांतनु की भार्या बन गंगा,
अष्टवसुओं को श्रापमुक्त कराई।
निर्मल धार की शोभा न्यारी,
अति पावन माँ गंगा हमारी।

हर-हर गंगे, नमामि गंगे।
पतितपावनी, मोक्षदायिनी गंगे।

जल है इसका अति गुणकारी,
हर लेती हर पाप हमारी।
जो जन इसके शरण में आए,
भव बन्धन से मुक्त हो जाए।

हर-हर गंगे, नमामि गंगे।
पतितपावनी, मोक्षदायिनी गंगे।

कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’
शिक्षिका
मध्य विद्यालय बाँक
जमालपुर

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version